राजनीति और लोकतंत्र दो ऐसे शब्द हैं जो एक-दूसरे के पूरक हैं. एक लोकतांत्रिक देश में राजनीति उतनी ही मायने रखती है जितनी कि दांतों के बीच जीभ. जैसे कि दांतों के बीच में रह कर जीभ को बड़ी सावधानी से अपने सारे काम करने पड़ते हैं वैसे ही लोकतंत्र में राजनीति को भी करना पड़ता है. आज भारत की राजनीति जहां तक पूरी तरह गठबंधन पर निर्भर करती है वहीं इसके कई प्रकार भी मौजूद हैं जो पूरी तरह से भारत को अन्य लोकतंत्र से अलग करते हैं. कई बार व्यंग्य में यह भी देखने को मिला है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत शायद इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि भारत में जितनी राजनैतिक पार्टियां हैं उससे ज्यादा कहीं नहीं हैं.
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लोकतंत्र की कार्यप्रणाली(Democracy In India) : अगर अब्राहिम लिंकन की बात “ऑफ द पिपल, फार द पिपल और बाई द पिपल’’ को लोकतंत्र के लिए मानक माना जाए तो तो शायद ऐसे बहुत कम देश मिलेंगे जो पूरी तरह इस सिद्धांत पर आधारित हैं. एक स्वस्थ राजनीति जो एक लोकतांत्रिक देश के हित में हो पूरी तरह से उस देश की रूप-रेखा को बदल सकती है. जहां जनता द्वारा सत्ता का निर्माण होता हो तथा जो पूरी तरह से जनता के अधिकारों का ख्याल रखे सही रूप में वहीं अच्छी राजनीति है और यही राजनीति एक सफल लोकतंत्र बनाने में कारगर साबित होगी.
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क्या अभी भी लोकतंत्र बचा है: भारत जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है अगर उसकी ही बात करें तो अच्छे तरीके से इस बात पर रोशनी डाली जा सकती है कि क्या अभी भी वो स्वस्थ लोकतंत्र बचा है जिसकी कल्पना में भारत आज़ादी के बाद अग्रसर हुआ था. शायद नहीं, भारत अब वो लोकतंत्र नहीं रह गया है जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का तगमा दिया गया है. यहां की विकृत राजनीति ने उस लोकतंत्र की कब की हत्या कर दी है. जिस लोकतंत्र में जनता के अधिकारों और उसके मूल्यों पर राजनीति हावी हो वहां किसी भी तरह से लोकतंत्र जीवित रह ही नहीं सकता.
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राजनीति बड़ा या लोकतंत्र(Politics In India): यह तो एक स्पष्ट बात है कि राजनीति लोकतंत्र के लिए वह उपकरण है जो जैसे चाहे वैसे उसको चला सकता है पर क्या आज की राजनीति में ऐसी मानसिकता है जो जनता के लोकतंत्र को बचा कर रख सकती है? जहां लूट की राजनीति की जा रही हो, जो राजनीति स्वांत: सुखाय के भावना से की जा रही हो उससे यह उम्मीद रखना ही व्यर्थ है कि वह लोकतंत्र के महान मूल्यों की रक्षा करने में सक्षम होगी.
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