किसानों को उल्लू बनाकर राजनीति करना भारतीय राजनेताओं को बहुत प्रिय है. किसान और मज़दूर दो ऐसे वर्ग हैं जिन पर आसानी से राजनीति की जा सकती है पर अधिकांश मामलों में देखा गया है कि यह राजनीति उनके पक्ष में न होकर अपने राजनीतिक अरमानों को पूरा करने के लिए ज्यादा की जाती है. ऐसा ही एक मामला आजकल सुर्खियों में छाया हुआ है. महाराष्ट्र में गन्ने के मूल्य में बढ़ोत्तरी को लेकर किसानों का प्रदर्शन एक राजनीतिक आयाम ले चुका है. किसानों के नेता के रूप में उभरे राजू शेट्टी ने उनकी अगुवाई की वहीं इसके विपक्ष में एनसीपी के नेता शरद पवार के तेवर तल्ख नज़र आए.
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मसला क्या था?: गन्ने के मूल्य में इजाफा करने के लिए किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया और आक्रोशित किसानों ने पथराव भी किया वहीं दूसरी ओर पुलिस ने भी कड़ा रुख अपना लिया. पुलिस और किसानों के बीच हुए झड़प ने माहौल को और गरम कर दिया. फायरिंग के दौरान एक किसान की मौत हो जाने के बाद प्रदर्शन और तेज हो गया. वहीं दूसरी ओर शरद पवार के एक बयान पर विवाद खड़ा हो गया. शरद पवार ने एक भाषण में यह कह दिया कि राजू शेट्टी दूसरी जाति के हैं और लोगों को भड़का रहे हैं. इसके साथ ही साथ पवार ने राजू शेट्टी पर किसानों को गुमराह करने के भी आरोप लगाए. यही इसका मुख्य कारण बना जिसने पूरे आंदोलन को हवा दे दिया. जब राजू शेट्टी की गिरफ्तारी हुई तो यह खुद भी विरोध का मुद्दा बन गया.
क्या अस्तित्व बचाने की लड़ाई शुरू होगी?
एंट्री के लिए अच्छा मौका: एंट्री के लिए यह एक अच्छा मौका साबित हो रहा है जो धूमिल पड़ चुके चेहरों को वापस लाने में कारगर है. इसमें सबसे पहले शिवसेना ने अपनी किस्मत आजमाई और इसके बाद से तो सबके लिए इसके दरवाजे खुल गए. सामाजिक कार्यकर्ता से नेता बने अरविन्द केजरीवाल भी इस अखाड़े में कूद पड़े. इस पूरे प्रदर्शन से संसाधनों पर भी काफी ज्यादा असर पड़ा और मौका परस्त राजनीति करने वाले लोग भी अपना उल्लू सीधा करने के फिराक़ में लग गए.
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