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‘कांग्रेस को चैन से सोने नहीं दूंगा’

रणनीति तय करने में सफल या असफल

arvind politics“2014 तक कांग्रेस को किसी भी हालत में चैन से सोने नहीं दूंगा.” अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस को चुनौती देते हुए यह बात कही पर सवाल यह है कि यह चुनौती सिर्फ कांग्रेस के लिए ही क्यों है ? क्या अरविंद केजरीवाल की भ्रष्टाचार की लड़ाई सिर्फ कांग्रेस तक ही सीमित है? यह सभी सवाल शायद तभी उठने शुरू हो गए थे जब अन्ना और केजरीवाल के रास्ते अलग-अलग हो गए थे और अन्ना आन्दोलन से उठने वाला भ्रष्टाचार का मुद्दा तब्दील होकर राजनीतिक सियासत से घिर गया था. कहते हैं कि तेजी से आया हुआ तूफान ज्यादा समय तक के लिए नहीं रहता है ऐसा ही कुछ हाल अरविंद केजरीवाल और उनकी राजनीतिक पार्टी इंडिया अगेंस्ट करप्शन का है. एक ऐसी पार्टी जो तेजी के साथ राजनीतिक मैदान में अपने आप को बेहतर विकल्प बनाने की कोशिश में लगी हुई है लेकिन शायद जो इस बात से अनजान है कि तेजी से राजनीतिक गलियारों में अपना वजूद खड़ा नहीं किया जाता है.


भविष्य की रणनीति ओझल

जब भी कोई पार्टी लोकतंत्र के राजनीतिक मैदान में अपने आपको बेहतर विकल्प के रूप में सामने लाने की कोशिश करती है तो पार्टी के लिए यह जरूरी होता है कि वो वर्तमान के साथ-साथ भविष्य की रणनीति भी तय कर ले. पर इंडिया अगेंस्ट करप्शन और अरविंद की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यही लग रहा है कि वो भविष्य की रणनीति को अभी भी तय नहीं कर पाए हैं. अरविंद केजरीवाल सिर्फ एक पार्टी के नेताओं पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हैं पर जब जनता के बीच में से यह आवाज उठने लगती है कि एक पार्टी के नेताओं के साथ-साथ और पार्टियों के नेताओं ने भी जनता को लूटा है तब केजरीवाल अपनी दिशा बदल लेते है. अरविंद केजरीवाल का सलमान खुर्शीद से हटकर एकदम नितिन गडकरी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाना इस बात एक अच्छा उदाहरण है. ऐसे में यह समझ पाना मुश्किल है कि अरविंद केजरीवाल की भविष्य की रणनीति क्या होगी ?

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मुद्दे की समझ से दूरी

इस बात में कोई शंका नहीं है कि आज आम जनता भ्रष्टाचार पर गर्माई हुई है और ऐसे में अरविंद केजरीवाल का भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर 2014 के संसदीय चुनाव में अपनी पार्टी को बेहतर विकल्प के रूप में प्रदर्शित कर पाना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि सिर्फ भ्रष्टाचार के सहारे ही केजरीवाल अपनी राजनीतिक नैया को पार नहीं लगा सकते हैं. अरविंद केजरीवाल को इस बात की कल्पना करनी होगी कि यदि वो भविष्य में 2014 के संसदीय चुनाव के लिए अपनी पार्टी को बेहतर रूप में प्रदर्शित कर भी पाते हैं तो क्या सिर्फ भ्रष्टाचार के सहारे ही भारत की सरकार चल सकती है. आरक्षण, भ्रूण हत्या, विदेशी मामले, भारत-पाकिस्तान सीमा मुद्दा, भारत-चीन विवाद, अमेरिका की रणनीतियों का भारत पर असर और धर्मनिरपेक्षता जैसे महत्वपूर्ण मामलों पर केजरीवाल की रणनीति दिखाई नहीं देती है.


केजरीवाल को अपनी पार्टी के भीतर दो बातों की समझ बनाने की जरूरत है. एक तो यह कि वो इस बात पर यकीन कर लें कि ज्यादा समय तक भ्रष्टाचार के सहारे राजनीति की नैया तैरने नहीं वाली है. दूसरी यह है कि बहुत तेज गति से राजनीतिक गलियारों में वजूद खड़ा नहीं किया जा सकता है. यदि केजरीवाल इन दो बातों की समझ नहीं बना पाते हैं तो 2014 के संसदीय चुनाव ही नहीं ना जाने कितने चुनावों तक सिर्फ अपनी पार्टी को बेहतर विकल्प के रूप में प्रदर्शित करने की लड़ाई लड़ते रहेंगे.

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