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यहां गुनाहगारों को मिलता है ईनाम

sonia and manmohanतानाशाही हो तो गुनाह करने पर सजा नहीं कामयाबी और तारीफ मिलती है. ऐसा ही कुछ हाल यूपीए सरकार का है. जब से यूपीए का दूसरा कार्यकाल आंरभ हुआ तब से लेकर आज तक विपक्ष में विरोधी दल ओझल से नजर आते हैं जिस कारण कांग्रेस के सहयोगी दल पूर्ण रूप से उसी पर आश्रित हैं. ऐसे समय में कांग्रेस के पास यह मौका है कि वो अपनी तानाशाही स्थापित कर सके जो वो कर भी रही है जिसका ज्वलंत उदाहरण तब देखने को मिला जब यूपीए सरकार ने अपने मंत्रिमडल में फेरबदल किया. व्यक्ति भ्रष्टाचारी हो या फिर नासमझी भरे बयान देने की योग्यता रखता हो, यूपीए सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. कांग्रेस अपने मंत्रियों का प्रमोशन करते समय सिर्फ अपना लाभ देखती है कि भविष्य में कौन सा मंत्री ज्यादा से ज्यादा घोटाले कर सकेगा और उसे बेहतर ढंग से छुपा सकेगा.


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तानाशाही में गुनाह करने पर ईनाम

आलाकमान का फैसला कहें या फिर कथित लोकतांत्रिक भारत के प्रधानमंत्री का फैसला जिन्होंने मंत्रिमंडल में भ्रष्टाचारी मंत्रियों का प्रमोशन करके यह जाहिर कर दिया कि अब यूपीए की तानाशाही है और इस तानाशाही का विरोध करने वाला कोई नहीं है. मनमोहन सिंह ने मंत्रिमंडल की शक्ल में आखिरी फेरबदल करते हुए कहा कि वे राहुल गांधी को भी अपनी टीम में चाहते थे, लेकिन वे तैयार नहीं हुए. हैरानी वाली बात तो यह थी कि सलमान खुर्शीद को विदेश और पवन बंसल को रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है और शायद कांग्रेस के लिए यह जरूरी भी था. क्योंकि यह वो चेहरे हैं जिन्हें 2014 में होने जा रहे चुनावी महाभारत में पराक्रम दिखाना जरूरी है.


manmhohan singhसलमान खुर्शीद से जुड़े ट्रस्ट में हुए फर्जीवाड़े के आरोपों ने पिछले दिनों काफी तूल पकड़ा था, लेकिन सलमान को विदेश जैसा अहम मंत्रालय सौंपा गया है. इस मसले पर राजनीतिक जानकार चुटकी भरते हुए कह रहे हैं कि शायद आलाकमान खुर्शीद के 76 लाख जैसे छोटे घोटाले से खुश नहीं हैं इसलिए खुर्शीद को विदेश मंत्रालय सौंप कर बड़ा घोटाला करने का मौका दिया जा रहा है. मसला सलमान खुर्शीद का ही नहीं है कर्नाटक के कोआपरेटिव बैंक के बोर्ड में रहते हुए के. रहमान खान पर 200 करोड़ के घोटाले में शामिल होने का आरोप है. अब वे अल्पसंख्यकों का कल्याण करेंगे. उधर, कोयला घोटाले के छींटे पड़ने के बावजूद केंद्रीय कोयला मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल की कुर्सी बरकरार है और अपने विवादित और गैरजिम्मेदाराना बयानों वाले केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा को भी नहीं छेंड़ा गया. तो साफ है कि प्रधानमंत्री के लिए आरोप लगना कोई मुद्दा नहीं है क्योंकि उनकी सरकार की तानाशाही में आरोप लगाने वाला कटघरे में खड़ा होता है ना कि वो जिस पर आरोप लगा होता है. तानाशाही का राज भारतीय लोकतंत्र में इस हद तक है कि सरकार विकलांगों के विकास के हिस्से का पैसा खाने वालों का प्रमोशन कर रही है और जमीनी हलात से बेखबर राजकुमार को मंत्रिमंडल में सम्मिलित करने की सोच रही है.


1975 से 1977 तक देश में आपातकाल था उस समय भी देश के हालात इतने खराब नहीं थे जितने आज हैं और उस दौरान भी देश में ऐसे फैसले नहीं लिए गए जैसे यूपीए सरकार अब ले रही है. आरोप लगाने वालों को दंडित किया जाता है और उन्हें ही सवालों के कटघरे में खड़ा किया जाता है…भ्रष्टाचारियों को ईनाम और शाबासी दी जाती है. भारत के कथित लोकतंत्र की पूर्ण पतन की यह स्थिति बेहद अवसादजनक है.

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Tags: Cabinet Changes in India, congress party, Sonia and Manmohan, UPA corruption, UPA government, कांग्रेस, भ्रष्टाचार, यूपीए, सोनिया गांधी

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