राजनीति में एक-दूसरे पर आरोप लगाने का चलन बहुत पुराना है साथ ही दागी मंत्रियों को स्टार प्रचारक बनाकर और उन्हें चुनावी मैदान में एक बेहतर उम्मीदवार के रूप में भी उतारा जाता है. हिमाचल प्रदेश को “देव भूमि” के नाम से भी पुकारा जाता था पर अब यह देव भूमि नहीं भ्रष्टाचारों से घिरे मंत्रियों की भूमि है. हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 4 नवम्बर को होने हैं जिसमें कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की सूची में एक मुख्य नाम हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का भी है जिन पर भाजपा के मुख्य नेता अरुण जेटली ने आरोप लगाया कि 2008 के बाद से उन्होंने अपने आयकर दस्तावेजों में बदलाव कर पिछली तारीख का अनुबंध पत्र दिखाने की कोशिश की है.
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अरुण जेटली का वीरभद्र सिंह पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाना कांग्रेस के लिए घातक सिद्ध हो सकता है. हिमाचल की राजनीति का इतिहास कुछ ऐसा रहा है कि यहां भाजपा और कांग्रेस दो मुख्य पार्टियां रही हैं. 1977 में प्रदेश में जनता पार्टी चुनाव जीती और शांता कुमार मुख्यमंत्री बने थे फिर वर्ष 1980 में रामलाल ठाकुर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो गए थे और 8 अप्रैल, 1983 को उनके स्थान पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को बनाया गया था. कांग्रेस पार्टी यह नहीं भूल सकती है कि 1985 के चुनाव में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस (ई) पार्टी को भारी बहुमत मिला था और वीरभद्र सिंह दुबारा मुख्यमंत्री बने थे. इस तरह हिमाचल प्रदेश पर सत्ताधारी पार्टी का परिवर्तन होता रहा है और आज वर्तमान में प्रदेश में भाजपा की सरकार है जिसके मुखिया प्रेम कुमार धूमल हैं.
हिमाचल प्रदेश का राजनीतिक इतिहास जानने के बाद इस बात में कोई शंका नहीं है कि वीरभद्र सिंह हिमाचल की राजनीति में एक मुख्य नाम हैं. यदि उन पर आरोप लगता है तो इस बात में कोई शंका नहीं है कि इससे 4 नवम्बर को होने वाले हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव पर असर पड़ेगा पर वीरभद्र सिंह पर यह पहला आरोप नहीं है. वीरभद्र सिंह अरुण जेटली के आरोप से पहले भी एक बार आलोचनाओं के घेरे में आ गए थे जब उन पर एक स्टील कंपनी से धन प्राप्त करने का आरोप लगा था. यह बात तब सामने आई थी जब उस कंपनी पर 2010 में छापा पड़ा था. तो ऐसे में सवाल यह है कि आरोपों को झूठा साबित किए बिना कैसे कोई नेता किसी पार्टी का स्टार प्रचारक हो सकता है और कैसे उसे भविष्य में एक बेहतर उम्मीदवार के रूप में देखा जा सकता है?
वीरभद्र सिंह शिमला (ग्रामीण) क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के नए नेता ईश्वर रोहल के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. कांग्रेस नेता और हिमाचल प्रदेश के पांच बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह ने चार नवम्बर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए दाखिल हलफनामे में अपनी संपत्ति का ब्यौरा कम देकर भले ही हिमाचली लोगों का विश्वास जीतने की कोशिश की हो पर उस बात का क्या जब मीडियाकर्मियों ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में सवाल पूछे, तो उन्होंने मीडियाकर्मियों के कैमरे तोड़ने की धमकी दे डाली और साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि “मैं इन सब मुद्दों से चार नवंबर को चुनाव खत्म हो जाने के बाद निपटूंगा.” तो ऐसे में सवाल यह है कि क्यों वीरभद्र सिंह चार नवंबर के बाद जनता को जबाव देंगे? हिमाचली लोगों को अपने प्रतिनिधियों को चुनने का फैसला चार नवंबर को लेना है तो फिर क्यों वीरभद्र सिंह चुनावों के बाद अपने ऊपर लगे आरोपों के जबाव देंगे.
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