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क्या अस्तित्व बचाने की लड़ाई शुरू होगी?

भ्रष्टाचार के विरुद्ध सामाजिक आंदोलनों के कारण अन्ना हजारे एक ऐसे नाम के रूप में उभर कर सामने आए जिस पर आम जनता विश्वास जताने लगी थी. शायद इसीलिए उन्होंने अरविंद केजरीवाल से साफ कह दिया था कि वो अपनी राजनीतिक पार्टी का प्रचार करने में उनके नाम का प्रयोग नहीं करें. अन्ना और केजरीवाल के रास्ते अलग-अलग होने से यह बात तो साफ जाहिर हो गई थी कि अब देश से भ्रष्टाचार मिटाना मुख्य मुद्दा नहीं रहा है बल्कि मुद्दा यह है कि कौन किस पर भारी है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि केजरीवाल अपनी राजनीतिक पार्टी बनाकर खबरों का हिस्सा बने हुए हैं. अब यही बात शायद अन्ना हजारे को खटकने लगी है तभी अन्ना हजारे ने भी अपनी एक नई टीम बनाने का ऐलान कर दिया. अन्ना का कहना है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने के लिए देश भर से हजारों लोगों के खत आ रहे हैं. उनके पास अब तक 100 कर्नल, 9 आईएएस, 7 आईपीएस स्तर के रिटायर्ड अधिकारियों समेत कई लोगों के आवेदन पहुंचे हैं. आगामी डेढ़ से दो माह के भीतर 45 सदस्यीय कोर कमेटी घोषित कर दी जाएगी. इसके सभी सदस्यों के लिए संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करना अनिवार्य होगा. साथ ही अन्ना ने यह अपनी और केजरीवाल के बीच की दूरी का भी अहसास करा दिया जब उन्होंने यह कहा कि अरविंद केजरीवाल को छोड़कर अन्ना की पुरानी टीम के सदस्य भी उनकी नई टीम में सम्मिलित हो सकते हैं.

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anna hazre politicsअन्ना हजारे को लेकर इस बात की भी उम्मीद जताई जा रही है कि वह भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ लगाए गए आरोपों की समीक्षा व उस पर प्रतिक्रिया देने के लिए अपने सलाहकारों और विशेषज्ञों से मिलेंगे. मीडिया के एक समूह से तो अब यह बात उठने भी लगी है कि यदि अन्ना भी केजरीवाल की तरह राजनेताओं पर आरोप लगाने का सिलसिला शुरू करेंगे तो कहीं अन्ना भी अपनी नई टीम को 2014 के संसदीय चुनाव के लिए एक बेहतर विकल्प तो नहीं बनाना चाहते हैं. ऐसा तो नहीं है कि अब अन्ना को भी लगने लगा है कि राजनीतिक पार्टी बनाकर ही भ्रष्टाचार से लड़ा जा सकता है.


रास्ते अलग-अलग हों पर यदि मंजिल एक है तो इस बात की सम्भावनाएं ज्यादा होती हैं कि दो अलग-अलग रास्तों पर चलने वाले व्यक्तियों के हितों के बीच में टकराव हो. ऐसा ही कुछ हाल अन्ना और केजरीवाल का है जिन्होंने रास्ते तो अलग-अलग कर लिए हैं पर मंजिल पर पहुंचने तक के रास्ते में दोनों के बीच में टकराव होना लगभग तय है. राजनीति की समझ रखने वाले लोगों का यह तक कहना है कि अरविंद केजरीवाल की शुरू से ही अपनी अलग राजनीति पार्टी बनाने की मंशा थी. ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि अन्ना जब अपनी नई टीम के साथ मैदान में उतरेंगे तो इस बात का क्या दावा है कि अन्ना हजारे की नई टीम के किसी भी सदस्य की आगे चलकर अपनी राजनीतिक पार्टी या फिर एक अलग नई टीम बनाने की मंशा जाग्रत नहीं होगी. समीक्षक यह तक मान रहे हैं कि किरण बेदी को अन्ना हजारे की नई टीम में लीड रोल दिया जाएगा जो किरण बेदी हमेशा से चाहती थीं और जिस कारण ही केजरीवाल और किरण बेदी के बीच हमेशा से दूरी बनी रही थी. कभी अन्ना और केजरीवाल के रास्ते अलग-अलग होना, कभी अन्ना का यह कहना कि मंजिल एक है सिर्फ रास्ते अलग-अलग हुए हैं, कभी बाबा रामदेव का अन्ना को समर्थन देना यह सब बातें भविष्य के उस वक्त की कल्पना करने पर मजबूर करती हैं जो यह कहता है कि एक समय ऐसा भी आएगा जब यह सभी समाज सेवक भ्रष्टाचार के मुद्दे को पूरी तरह छोड़कर अपना अस्तित्व बनाए रखने की लड़ाई लड़ रहे होंगे.


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