बचपन में आपने कहानियों में तो बहुत सुना होगा कि जब एक राजा के परिवार में बेटा जन्म लेता है तो यह तय होता है कि आने वाले समय में राजा का बेटा राजा बनेगा फिर चाहे राजा के बेटे का बचपना खत्म हुआ हो या नहीं. ऐसा ही कुछ हाल भारत का भी है जहां स्वतंत्रता के बाद से कांग्रेस ही अधिकांश समय राज करती रही है. यह बात अलग है कि कभी-कभी मौका दूसरी पार्टियों को भी मिलता रहा है पर मुख्य रुप से भारत में हमेशा कांग्रेस पार्टी ने ही राज किया है और कांग्रेस पार्टी की डोर गांधी परिवार के हाथों में रही है. इन दिनों गांधी परिवार की आलाकमान के हुक्म पर भारत में राजनीति का तमाशा खेला जाता है. आलाकमान के बेटे राहुल गांधी को भविष्य का प्रधनमंत्री माना जा रहा है पर सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने के योग्य हैं? राहुल गांधी के बयानों को सुनने के बाद तो नहीं लगता है………
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इस सच से हर कोई वाकिफ है कि आलाकमान जब चाहें अपने बेटे को प्रधानमंत्री बना सकती हैं. सोनिया गांधी के हाथों में राजनीति की वो शक्ति है कि वो जब चाहे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बना सकती हैं पर सवाल यह नहीं है कि सोनिया राहुल को प्रधानमंत्री बना सकती है या नहीं बल्कि सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने के योग्य हैं? और यदि राहुल गांधी प्रधानमंत्री बन भी गए तो क्या वो अपने दायित्वों को निभा पाएंगे? या फिर डॉ. मनमोहन सिंह की तरह प्रधानमंत्री बनने के बाद राहुल गांधी के होठों पर भी चुप्पी दिखेगी. वैसे जो भी हो पर इस बात में कोई शंका नहीं है कि राहुल गांधी में अभी प्रधानमंत्री बनने के लिए बचपना है जो उनके बयानों में दिखता है. चंडीगढ़ में पंजाब यूनिवर्सिटी कैंपस में नेशनल स्टूडेंट यूनियन आफ इंडिया (एनएसयूआई) की रैली को संबोधन करते हुए राहुल ने कहा कि पंजाब में 10 में से सात युवा नशे की चपेट में हैं और राहुल गांधी के भाषण को सुनने के बाद अकाली दल के सांसद नरेश गुजराल ने राहुल के इस बयान पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “मैं राहुल गांधी की तरह कोई गणित का विशेषज्ञ नहीं हूं जिन्होंने एक तूफानी दौरे में ही पता लगा लिया कि पंजाब में 10 में से सात युवा नशे के शिकार हैं.” यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने बिना किसी सबूत के भाषण दिया हो.
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राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में जीत हासिल करने के लिए जो बन पड़ सकता था सब किया. यहां तक कि ऐसे-ऐसे भाषण दिए जिनमें बचपना साफ झलकता था. याद होगा वो भाषण जिसमें ग्रेटर नोएडा के भट्टा-पारसौल गाँव में महिलाओं के साथ बलात्कार और राख के ढेर में लाशें दबी होने के आरोप लगाकर काँग्रेस महासचिव राहुल गाँधी ने उत्तर प्रदेश और देश की राजनीति में हलचल मचा दी थी. पर लगता है कि लोगों को आभास हो गया था कि राहुल गांधी में बचपना है और शायद इसी कारण उत्तर प्रदेश की जनता ने राहुल को बाहर का रास्ता दिखा दिया था. राहुल के बयान उन्हें खबरों में तो जरूर बना देते हैं पर साथ ही विवादों में भी फंसा देते हैं. राहुल गांधी का उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों पर दिया भाषण आज भी वहां के लोगों की भावना को आघात पहुंचाता है जब राहुल ने कहा था कि पता नहीं क्यों बिहारी मुम्बई जैसे शहरों में भीख मांगने के लिए जाते हैं? यदि एक बार को सोच लिया जाए कि राहुल गांधी उत्तर प्रदेश और बिहार के विकास को लेकर चिंतित थे तो चिंता दिखाने का यह कौन सा तरीका था कि लोगों की भावनाओं को आघात पहुंचाया जाए.
ब्रिटिशपत्रिका‘द इकॉनमिस्ट’ में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी पर छपे एक लेख में राहुल गांधी की शख्सियत पर सवाल उठाते हुए उन्हें कन्फ्यूज़्डऔरनॉन-सीरियसबताया गया था. ‘द राहुल प्रॉब्लम’ शीर्षक सेप्रकाशित इसलेख में लिखा गया , “राहुल गांधी क्या करने की काबिलियत रखते हैं, यह कोई नहीं जानता.यहां तक कि राहुaल को खुद नहीं मालूम कि अगर उन्हेंसत्ता और जिम्मेदारियांमिल जाएं, तो वह क्या करेंगे.” राहुल गांधी को यह समझने की जरूरत है कि राजनीति मात्र भाषणों का ही खेल है यदि उसमें भी राहुल गांधी चुके तो प्रधानमंत्री बनने की डगर मुश्किल हो जाएगी.
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