लालकृष्ण आडवाणी(Lal Krishna Advani)और भाजपा को जानने वाले लोग आज हैरानी में नजर आते हैं क्योंकि भाजपा एक ऐसी पार्टी रही है जिसमें वंशवाद तो नहीं रहा लेकिन एक खास विचारधारा हुआ करती थी. पर आज भाजपा की विचारधारा में बिखराव नजर आता है. यह समय ही कुछ ऐसा है कि भाजपा के राजनेता अपने आपस की खटास को दूर करने और एक ही स्वर में बोलने का प्रयास कर रहे हैं क्योंकि 2014 के संसदीय चुनाव में भाजपा एक बेहतर विकल्प बनना चाहती है या सीधे तौर पर कहें तो भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता अपने आप को प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहते हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या भाजपा के सभी राजनेता एक स्वर में बोल पाएंगे और यदि ऐसा नहीं कर पाए तो भाजपा भविष्य में वो कौन से कदम उठाएगी कि 2014 के संसदीय चुनाव में वह एक बेहतर विकल्प बन सके.
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भाजपा के सीनियर लीडर लालकृष्ण आडवाणी(Lal Krishna Advani)ने बड़े जोश के साथ कहा कि अब भाजपा को एक ही स्वर में बोलने की जरूरत है और साथ ही सरकार को वेंटिलेटर पर बताते हुए कहा कि यह सरकार जितनी जल्दी चली जाए, देश के लिए उतना ही अच्छा है. लालकृष्ण आडवाणी की अंतिम बात में एक इशारा था जब उन्होंने राष्ट्रीय परिषद की बैठक में कहा कि अगर 20 दिन पहले उनसे राय ली जाती तो वे जरूर कहते कि इस सरकार के जल्द जाने की उम्मीद नहीं है लेकिन अब उन्हें लगभग निश्चित लगता है कि यह सरकार 2014 तक नहीं चलेगी.
लालकृष्ण आडवाणी(Lal Krishna Advani)का इशारा साफ है कि आज के समय में जनता यूपीए से नाराज है क्योंकि यूपीए की नीतियों ने आम आदमी की हालत ऐसी कर दी है कि आम आदमी को दिन में नाश्ता करने से पहले सोचना पड़ता है कि क्या अब वो रात का खाना पेट भर के खा पाएगा या भूखे पेट ही उसे सोना पड़ेगा. एफडीआई से तो जनता नाराज थी ही ऐसे में राजकोषीय मजबूती का खाका बनाने के लिए गठित केलकर समिति ने सरकार को सलाह दी है कि रसोई गैस, केरोसीन, डीजल तथा राशन की दुकान से मिलने वाले अनाज के दाम बढ़ाकर विभिन्न तरह की सब्सिडी को समाप्त कर दिया जाए. अब इस स्थिति को देखने के बाद तो ऐसा ही लगता है कि आम जनता का यूपीए सरकार पर प्रहार होने वाला है और वो प्रहार इतना अधिक होगा कि शायद यूपीए अपनी सरकार को नहीं बचा पाएगी.
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लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani)ने 2014 के संसदीय चुनाव के लिए भाजपा को तैयार रहने के लिए तो बोल दिया पर उनका भाजपा को एक स्वर में बोलने का इशारा देना एक बड़ा सवाल खड़ा करता है कि क्या अब लालकृष्ण आडवाणी को लगता है कि भाजपा नेताओं के एक स्वर में बोले बिना 2014 के संसदीय चुनाव में काम नहीं बनने वाला है. आखिरकार लालकृष्ण आडवाणी को याद आ गया कि एफडीआई पर कुछ दिनों पहले ही भाजपा के नेताओं की सोच में भिन्नता नजर आई थी जब एफडीआई पर भाजपा के नेता और पूर्व मंत्री अरुण शौरी और भुवनचंद्र खंडूरी ने भिन्न-भिन्न बयान दिए थे.
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भाजपा संसदीय शक्ति के लिहाज से देश का दूसरा सबसे बड़ा राजनीतिक दल है पर साथ ही याद आता है वो समय जब 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को ऐसी हार देखनी पड़ी थी कि भाजपा नेताओं ने कुछ समय के लिए जीत की उम्मीद रखना छोड़ दिया था. पर साथ ही भाजपा के उस समय को भी भुलाया नहीं जा सकता है जब राम मंदिर आंदोलन का शोर हर जगह था और उसी समय में भाजपा पहली बार अकेले दम पर चार राज्यों मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में सत्ता में आई थी.
आज यूपीए की स्थिति लड़खड़ा रही है. यूपीए के समर्थक दल यूपीए से समर्थन वापस लेने की सोच रहे हैं और ममता बनर्जी समर्थन वापस भी ले चुकी हैं. ऐसे में हो सकता है कि भाजपा अपने सीनियर लीडर लालकृष्ण आडवाणी(Lal Krishna Advani) बातों पर ध्यान दे और भविष्य में अपने आप को 2014 के संसदीय चुनाव के लिए बेहतर विकल्प बनाकर प्रदर्शित करे.
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