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नीतीश कुमार: मैं प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं…….

विशेष राज्य का दर्जा मांगकर राजनीति का खेल खेलना अब काफी पुराना हो गया है. भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में लोगों की भवानाओं के साथ खेलने के लिए विशेष राज्य की मांग पहली बार नहीं है. याद होंगी आपको वो रैलियां जिन रैलियों में बिहार के मुख्यमंत्री ने विशेष राज्य की मांग की थी और बड़े जोश के साथ कहा था कि ‘दस करोड़ बिहार वासियों की हकमारी आख़िर कब तक बर्दाश्त की जाएगी?विशेष राज्य का दर्जा हासिल करने के निर्णायक संघर्ष में अब बिहारी ज़रूर उतरेंगे और पटना ही नहीं, दिल्ली के मैदान से भी हुंकार भरेंगे” पर साथ ही बिहार के मुख्यमंत्री ने ऐसी राजनीति खेली जो वास्तव में पूरी तो नहीं हो सकी पर हां, उस राजनीति के खेल ने इस बात का अहसास जरूर करा दिया कि नीतीश (Nitish Kumar)जी अपनी राजनीति भविष्य में भी बिहार के विशेष दरजे का सहारा लेकर खेलते हुए नजर आएंगे. शायद आज उसी राजनीति का परिणाम है कि नीतीश(Nitish Kumar) जी खुलकर नहीं कह पा रहे कि वो यूपीए गठबंधन का साथ देंगे या नहीं. हालांकि बाद में उन्होंने जरूर कहा कि उनके कहने का गलत अर्थ लगाया गया लेकिन राजनीति में शब्दों की महिमा बहुत बड़ी है.


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nitish kumarनीतीश कुमार (Nitish Kumar)जी को अपने दरजे को ऊपर रखने से बेहद प्यार है इसलिए ज्यादातर नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी से रूठे हुए नजर आते हैं और हमेशा ही इसी कोशिश में लगे रहते हैं कि वो नरेंद्र मोदी के रास्ते पर ना चलें और अपने लिए अलग ही रास्ता बनाएं. आने वाले समय में नीतीश कुमार(Nitish Kumar)को यह मौका मिल सकता है या फिर वो यह मौका ले लेंगे ये तो समय ही बताएगा.


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार(Nitish Kumar)के विशेष दर्जा मांगने के पीछे 2014 के प्रधानमंत्री चुनाव में अपने अस्तित्व को केंद्रीय स्तर पर बना देने की आकांक्षा नजर आती है. एनडीए के लिए नीतीश कुमार(Nitish Kumar) की चेतावनी है कि ‘मुझे प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की तरफ ध्यान दो वरना मैं तो चला’. आज जहां समर्थन देने और समर्थन लेने की बात हो रही है उसी बीच में क्षेत्रीय पार्टियों को मौका मिल गया है कि ब्लैकमेल की राजनीति कर सकें और 2014 के चुनाव में खुद को उच्च स्तर पर ला सकें. नीतीश कुमार अब क्षेत्रीय राजनीति तक सीमित रहना नहीं चाहते हैं बल्कि वो अपने आप को प्रधानमंत्री के पद की तरफ बढ़ते देखना चाहते हैं.


इस घटनाक्रम के बाद ये साफ लग रहा है कि नीतीश कुमार केवल एनडीए के भरोसे नहीं रहना चाहते बल्कि उन्होंने एक खुले विकल्प की बात रखी है. शायद यूपीए के हाथ बढ़ाते ही एनडीए भी सतर्क हो जाए और नीतीश कुमार की बात समझ सके.


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