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अमीर खुसरो की अनसुलझी पहेलियां सुलझाओ तो जाने

आप हिले और मोहे हिलाए
वा का हिलना मोए मन भाए
हिल हिल के वो हुआ निसंखा
ऐ सखि साजन? ना सखि! पंखा!


अति सुरंग है रंग रंगीले
है गुणवंत बहुत चटकीलो
राम भजन बिन कभी न सोता
ऐ सखि साजन? ना सखि! तोता!


अर्ध निशा वह आया भौन
सुंदरता बरने कवि कौन
निरखत ही मन भयो अनंद
ऐ सखि साजन? ना सखि! चंद!

अमीर खुसरो के बारे में एक अनकही बात

आज भी मशहू गायक जैसे राहत फतह अली खान, कैलाश खेर अमीर आदि खुसरो की लिखी हुई पंक्ति पर गीत गाते हैंजैसे:

छाप तिलक सब छीनी मोसे नैना मिलाय के,
बात अगम कह दीनी रे मोसे नैना मिलाय के…”


हिंदी साहित्य इतिहास के वरेण्य आचार्य, रामचंद्र शुक्ल जी ने अमीर खुसरो को  अपने इतिहास के फुटकल रचनाएं के खाते में डाला था. रामचंद्र शुक्ल जी का हिन्दी साहित्य की रचनाओं के महान समीक्षकों में नाम लिया जाता है. पर  आचार्य शुक्ल जी ने अमीर खुसरो को आदिकाल के फुटकल खाते में किसी तरह कमतर मानकर नहीं डाला था, अपभ्रंश काल और देशभाषा काव्य श्रेणियों में वे कहीं खप नहीं पा रहे थे तो उन्हें विद्यापति के साथ लोकभाषा पद्य के शीर्षक के साथ सगर्व रखा गया था, उनके प्रदेय का उचित सम्मान करते हुए.


Read:पंचतंत्र का रहस्य जरूर जानना


amir khusroअमीर खुसरो का जन्म और शिक्षा

अमीर खुसरो के पिता अमीर सैफुद्दीन एक तुर्की कबीले के सरदार थे जो चंगेजी युद्धों के दौरान हिंदुस्तान आ गए थे और उत्तर प्रदेश में गंगा के तट पर बसे एटा जिले के पटियाली नामक कस्बे में बस गए थे जहां पर हिजरी सन् 651 (1253 ई.) में अमीर खुसरो(Amir Khusro)पटियाली (एटा) में जन्मे.


अमीर खुसरो हमेशा से ही बडे मेधावी थे, इसीलिए अच्छी शिक्षा-दीक्षा के लिए इनके पिता सैफुद्दीन इन्हें दिल्ली ले आए. अमीर खुसरो को अच्छे शिक्षकों के हवाले तो किया ही, उन्हें प्रसिद्ध सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया की शिष्यता में रख दिया. तब से जीवन-पर्यन्त ये उनके शिष्य रहे और 50 वर्ष की आयु तक वे पूरी तरह उन्हीं को समर्पित हो गए.


आठ वर्ष की आयु में पिता की मृत्यु के पश्चात अमीर खुसरो की माता अपने पिता, एमानुमुल्क के यहां अमीर खुसरो को ले आयीं. नाना का घर हिन्दुस्तानी सभ्यता और संस्कृति का केन्द्र था – ऐसे उदार वातावरण में उनका कैशोर्य परवान चढा.


अमीर खुसरो (Amir Khusro)की खास बातें

अमीर खुसरो भारत में खड़ी बोली के पहले कवि हैं. हकीकत में खड़ी बोली को इतनी प्रसिद्धि दिलाने का  काम अमीर खुसरो ने ही किया. इसे खुसरो की पंचवदी के नाम से भी जाना जाता है. ये पांच मसनवियाँ हैं: मतला-उल-अनवार, शीरी व खुसरो , मजनूँ व लैला , आइने-सिकंदरी-या सिकंदर नामा, हशव-बहिश्त . अमीर खुसरो अपने पीर हजरत  निजामुद्दीन औलिया देहलवी के अनन्य भक्त थे. अमीर खुसरो ने अपने पीर के लिए कई सारी रचनाएं लिखीं. जब हज़रात निजामुद्दीन औलिया इस दार-ए-फानी से बिदा हुए तो इन्होंने उनकी याद में ये मशहूर रचना लिखी .



खुसरो दरिया प्रेम का उलटी बाकी धार,
जो उबरा सो डूब गया जो डूबा सो पार
सेज वो सूनी देखकर रोऊँ मैं दिन रात,
पिया-पिया मैं करत हूँ पहरों पल भर सुख न चैन
गोरी सोये सेज पर मुख पर डारे केस,
चल खुसरो घर आपने सांझ भई चहुँ देस.


Read:एक बार आ जाने के बाद आप यहां से नहीं जाएगे


Please post your comments on: क्या आप भी अमीर खुसरो के दिवाने है ?


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