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पराधीनता के ताबूत में आखिरी कील: भारत छोड़ो आन्दोलन

Quit India Movement

गुलामी की जंजीरों से आजादी का खुला आसमां हर किसी को प्यारा लगता है. एक पक्षी भी अपने पिंजरे से ज्यादा खुश खुले आकाश में होता है. आजादी के मायने भारतीयों से अधिक कोई नहीं समझ सकता. लगभग दो सौ सालों तक अंग्रेजों के चंगुल में रहने के बाद देश ने करोड़ों देशभक्तों की बलि देकर इस आजादी को प्राप्त किया और इस आजादी के लिए आखिरी जोरदार वार हुआ सन 1942 में.


Quit India MovementQuit India Movementin Hindi

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत तो 1857 में हो चुकी थी लेकिन गांधीजी के आने के बाद यह स्वतंत्रता संग्राम बेहद शांतिपूर्ण और अहिंसक बनकर आगे चला. गांधीजी ने कई मोर्चों पर देश को स्वाधीनता के लिए एक करने की कोशिश की और अंत में उन्होंने आखिरी बार 09 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलनशुरू किया जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक मील का पत्थर साबित हुआ.

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Quit India movement Quotes

भारत छोड़ो आंदोलन 9 अगस्त, 1942 को सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर प्रारम्भ हुआ था. आजादी की लड़ाई में जो दो पड़ाव सबसे अहम माने जाते हैं उनमें से एक 1857 का स्वतंत्रता संग्राम और दूसरा है गांधी जी का “भारत छोड़ो आंदोलन”.


क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद गांधी जी ने एक और बड़ा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय लिया जिसे भारत छोड़ो आन्दोलन का नाम दिया गया.


quit-india-movementक्या है भारत छोड़ो आंदोलन

“भारत छोड़ो आन्दोलन” भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की अन्तिम महान लड़ाई थी, जिसने ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया. क्रिप्स मिशन के खाली हाथ भारत से वापस जाने पर भारतीयों को अपने छले जाने का अहसास हुआ. दूसरी ओर दूसरे विश्वयुद्ध के कारण परिस्थितियां अत्यधिक गम्भीर होती जा रही थीं. जापान सफलतापूर्वक सिंगापुर, मलाया और बर्मा पर क़ब्ज़ा कर भारत की ओर बढ़ने लगा, दूसरी ओर युद्ध के कारण तमाम वस्तुओं के दाम बेतहाशा बढ़ रहे थे और इस वजह से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीय जनमानस में असन्तोष व्याप्त होने लगा था.


जापान के बढ़ते हुए प्रभुत्व को देखकर 5 जुलाई, 1942 को गांधी जी ने हरिजन में लिखा “अंगेज़ों! भारत को जापान के लिए मत छोड़ो, बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ जाओ.”


कब छेड़ा गया भारत छोड़ो आंदोलन

आन्दोलन के दौरान 8 अगस्त, 1942 ई. को “अखिल भारतीय कांग्रेस” की बैठक बम्बई (मुंबई) के ऐतिहासिक ग्वालिया टैंक में हुई. गांधी जी के ऐतिहासिक “भारत छोड़ो प्रस्ताव” को कांग्रेस कार्यसमिति ने कुछ संशोधनों के बाद 8 अगस्त, 1942 ई. की स्वीकार कर लिया और नौ अगस्त से भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई.


गांधी जी का मंत्र: करो या मरो का नारा

गांधीजी ने मुंबई के ही कांग्रेस अधिवेशन में करो या मरो का नारा दिया. जिसका अर्थ था- भारत की जनता देश की आज़ादी के लिए हर ढंग का प्रयत्न करे.


भारत छोड़ो आंदोलन का प्रभाव

9 अगस्त को सुबह से ही अंग्रेजों ने “ऑपरेशन ज़ीरो ऑवर” के तहत कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण नेता गिरफ्तार करने शुरू कर दिए.


गांधीजी का उपवास

सरकार के भारतीयों की मांग की ओर ध्यान न देने पर 10 फ़रवरी, 1943 से गांधीजी ने 21 दिन का उपवास शुरू कर दिया. उपवास के 13वें दिन ही गांधीजी की हालत बेहद खराब होने लगी लेकिन अंग्रेजों ने इनकी तरफ ध्यान नहीं दिया. इतिहासकार मानते हैं कि अंग्रेज खुद चाहते थे कि गांधीजी मर जाएं.


भारत छोड़ोआंदोलन का फल

‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ भारत को स्वतन्त्र भले न करवा पाया हो, लेकिन इसका दूरगामी परिणाम सुखदायी रहा. इसलिए इसे “भारत की स्वाधीनता के लिए कियाजाने वाला अन्तिम महान प्रयास” कहा गया. 1942 ई. के आन्दोलन की विशालता को देखते हुए अंग्रेज़ों को विश्वास हो गया था कि उन्होंने शासन का वैद्य अधिकार खो दिया है.


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