राजनीति को मैंने जितना दिया, उससे कहीं ज्यादा मुझे मिला
अपनी जीत की घोषणा होने के कुछ देर बाद ही देश के भावी महामहिम प्रणब मुखर्जी के यह वाक्य साफ दर्शाते हैं कि देश की राजनीति में प्रणब मुखर्जी ने कितना सहयोग दिया है और उन्हें इससे कितना वापस मिला है.
भारतीय राजनीति में प्रणब मुखर्जी एक जानी-मानी हस्ती हैं. कभी देश के वित्त मंत्री रहे प्रणब दा अब कुछ दिनों के बाद भारत के 13वें राष्ट्रपति की शपथ लेंगे. प्रणब मुखर्जी को कुछ लोग कांग्रेस पार्टी का संकटमोचक भी मानते हैं जो सही भी है. कांग्रेस की डूबती नैया को कई बार खुद प्रणब मुखर्जी ने ही सहारा देकर किनारे तक पहुंचाया है.
Pranab Mukherjee President of India In Hindi: प्रणब मुखर्जी का व्यक्तित्व
कई मंत्रालयों का कार्यभार संभाल चुके 76 वर्षीय प्रणब मुखर्जी राजनीति में चार दशक से अधिक समय बिता चुके हैं. प्रणव मुखर्जी संजीदा व्यक्तित्व वाले नेता हैं. पार्टी के वरिष्ठतम नेता होने के कारण वह राजनीति की भी अच्छी समझ रखते हैं. बंगाली परिवार से होने के कारण उन्हें रबिंद्र संगीत में अत्याधिक रुचि है.
Political Profile of Pranab Mukherjee: प्रणब मुखर्जी का राजनैतिक सफर
प्रणव मुखर्जी ने अपने शुरुआती जीवन में वकालत और अध्यापन कार्य समेत पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करते हुए भी काफी समय व्यतीत किया है. प्रणव मुखर्जी के पिता कामदा मुखर्जी एक लोकप्रिय और सक्रिय कांग्रेसी नेता थे. वह वर्ष 1952 से 1964 तक बंगाल विधानसभा के सदस्य रहे थे. पिता का राजनीति से संबंध होने के कारण प्रणव मुखर्जी का राजनीति में आगमन सहज और स्वाभाविक था. प्रणव मुखर्जी के राजनैतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1969 में राज्यसभा सदस्य के रूप में हुई. वह कांग्रेसी प्रत्याशी के तौर पर कई बार इस पद पर चयनित हुए. वर्ष 1973 में प्रणव मुखर्जी ने कैबिनेट मंत्री रहते हुए औद्योगिक विकास मंत्रालय में उप-मंत्री का पदभार संभाला. इन्दिरा गांधी की हत्या के पश्चात, राजीव गांधी सरकार की कैबिनेट में प्रणव मुखर्जी को शामिल नहीं किया गया. इस बीच प्रणव मुखर्जी ने अपनी अलग राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया. लेकिन जल्द ही वर्ष 1989 में राजीव गांधी से विवाद का निपटारा होने के बाद प्रणव मुखर्जी ने अपनी पार्टी को राष्ट्रीय कांग्रेस में मिला दिया. पी.वी नरसिंह राव के कार्यकाल में प्रणव मुखर्जी के राजनैतिक जीवन को एक बार फिर गति मिली. पी.वी नरसिंह ने इन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष और फिर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री बनाया. नरसिंह राव के कार्यकाल के दौरान उन्हें पहली बार विदेश मंत्रालय का पदभार भी प्रदान किया गया. वर्ष 1985 तक प्रणव मुखर्जी पश्चिम बंगाल कांग्रेस समिति के अध्यक्ष भी रहे, लेकिन काम का बोझ बढ़ जाने के कारण उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया था.
प्रणब मुखर्जी और यूपीए
मुखर्जी ने मई 2004 में लोक सभा का चुनाव जीता और तब से उस सदन के नेता थे. माना जाता है कि यूपीए सरकार में प्रणब मुखर्जी के पास सबसे ज़्यादा जिम्मेदारियाँ थीं और वे वित्त मंत्रालय संभालने के अलावा बहुत से मंत्रिमंडलीय समूहों का नेतृत्व कर रहे थे.
प्रणब मुखर्जी विभिन्न पदों पर
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