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इंदिरा गांधी : शख्सियत जिसने बदली भारतीय राजनीति

आज हम सब भारतीय राजनीति में जो बदलाव देखते हैं उसका श्रेय कहीं ना कहीं एक ऐसी शख्सियत को जाता है जिसने ना सिर्फ लोगों के दिलों पर राज किया बल्कि उन्हीं लोगों के लिए अपनी जान भी गंवा दी. भारतीय राजनीति में आज तक इंदिरा गांधी जैसा कोई नेता ना हुआ है और ना ही निकट भविष्य में किसी के ऐसा होने की उम्मीद है. देश की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आम जनता के बीच इस कदर लोकप्रिय थीं जिसकी कोई सीमा ना थी. इंदिरा गांधी ही वो नेता थीं जिसने असल मायनों में “गरीबी हटाओ” के नारे को सार्थक किया था. लेकिन कहते हैं ना कि अगर आपके पाले में कुछ गलत लोग हों तो उसका परिणाम आपको ही भुगतना पड़ता है.

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indira-gandhiइंदिरा गांधी दूरदर्शी महिला तो थीं पर अपने ही आस्तीन में उन्होंने सांप पाले हुए थे. जिस नेता ने कभी अपने इशारे पर बांग्लादेश से पाकिस्तानियों को हटावा दिया, जिसने पंजाब के स्वर्ण मंदिर में “ऑपरेशन ब्लू स्टार” चला कर आंतकियों का सफाया किया उसकी लोग आलोचना भी करते हैं. आपरेशन ब्लू स्टार से जहां उन्होंने आंतकियों का सफाया किया वहीं इसकी वजह से उन्होंने सिखों को अपना दुश्मन भी बना लिया. लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने अपने अंगरक्षकों की टोली में सिख ही रखे. यह जानते हुए भी कि सिखों से उन्हें दिक्कत हो सकती है उन्होंने सिख अंगरक्षक ही अपनी टोली में रखे जिसके परिणामस्वरुप उनकी मौत हुई.

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लेकिन तमाम ऊंच नीच के बावजूद इंदिरा गांधी को सदी की सबसे ताकतवर महिलाओं में से एक माना जाता है. अपने समय में इंदिरा गांधी जब मैदान में खड़ी होकर भाषण देती थीं तो लोग इस कदर मगन होकर सुनते थे जैसे उन पर किसी ने जादू कर दिया हो. आज उसी इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि है जिसने इस देश को परमाणु हथियारों के क्षेत्र में आगे बढ़ने का हौसला दिया.


इंदिरा गाधी को राजनीति विरासत में मिली थी और ऐसे में सियासी उतार-चढ़ाव को वह बखूबी समझती थीं. यही वजह रही कि उनके सामने न सिर्फ देश, बल्कि विदेश के नेता भी उन्नीस नजर आने लगते थे.


Indira Gandhiइंदिरा गांधी – एक परिचय

इंदिरा का जन्म 19 नवंबर, 1917 को हुआ था. पिता जवाहर लाल नेहरू आजादी की लड़ाई का नेतृत्व करने वालों में शामिल थे. वही दौर रहा, जब 1919 में उनका परिवार बापू के सानिध्य में आया और इंदिरा ने पिता नेहरू से राजनीति का ककहरा सीखा. मात्र ग्यारह साल की उम्र में उन्होंने ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए बच्चों की वानर सेना बनाई. 1938 में वह औपचारिक तौर पर इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हुईं और 1947 से 1964 तक अपने प्रधानमंत्री पिता नेहरू के साथ उन्होंने काम करना शुरू कर दिया. ऐसा भी कहा जाता था कि वह उस वक्त प्रधानमंत्री नेहरू की निजी सचिव की तरह काम करती थीं, हालाकि इसका कोई आधिकारिक ब्यौरा नहीं मिलता.


पिता के निधन के बाद कांग्रेस पार्टी में इंदिरा गांधी का ग्राफ अचानक काफी ऊपर पहुंचा और लोग उनमें पार्टी एवं देश का नेता देखने लगे. वह सबसे पहले लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनीं. शास्त्री जी के निधन के बाद 1966 में वह देश के सबसे शक्तिशाली पद [प्रधानमंत्री] पर आसीन हुईं.


एक समय ‘गूंगी गुडिया’ कही जाने वाली इंदिरा गांधी तत्कालीन राजघरानों के प्रिवी पर्स को समाप्त कराने को लेकर उठे तमाम विवाद के बावजूद तत्संबंधी प्रस्ताव को पारित कराने में सफलता हासिल करने, बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने जैसा साहसिक फैसला लेने और पृथक बांग्लादेश के गठन और उसके साथ मैत्री और सहयोग संधि करने में सफल होने के बाद बहुत तेजी से भारतीय राजनीति के आकाश पर छा गईं.


Emergencyइंदिरा गांधी और आपातकाल : सबसे बड़ी भूल

12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन्दिरा गांधी के लोक सभा चुनाव को रद्द घोषित कर दिया. उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप साबित हुए थे. उन्हें कुर्सी छोड़ने और छह साल तक चुनाव ना लड़ने का निर्देश मिला. लेकिन इंदिरा गांधी ने अपनी ताकतवर छवि और गर्म मिजाज दिमाग से आपातकाल का रास्ता निकाला.


25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी ने संविधान की धारा- 352 के प्रावधानानुसार आपातकालीन स्थिति की घोषणा कर दी. यह एक ऐसा समय था जब हर तरफ सिर्फ इंदिरा गांधी ही नजर आ रही थीं. वर्ष 1975 में आपातकाल लागू करने का फैसला करने से पहले भारतीय राजनीति एक ध्रुवीय सी हो गई थी जिसमें चारों तरफ इंदिरा ही इंदिरा नजर आती थीं. इंदिरा की ऐतिहासिक कामयाबियों के चलते उस समय देश में ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’ का नारा जोर शोर से गूंजने लगा.

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लेकिन इससे इंदिरा गांधी की उस छवि को गंभीर धक्का पहुंचा जिसकी वजह से वह गरीबों की मसीहा थीं और हरित क्रांति और श्वेत क्रांति की अगुआ मानी जाती थीं. बाद में 21 महीनों की इमरजेंसी को हटा इंदिरा गांधी ने सत्ता जनता के हाथों में दे दी.


1977 में हुए चुनावों में वह हार गईं लेकिन कुछ समय बाद ही वह दुबारा भारतीय सत्ता के शीर्ष पद पर पहुंच गईं.


indira gandhiखालिस्तान: मौत की वजह

उनके लिए 1980 का दशक खालिस्तानी आतंकवाद के रूप में बड़ी चुनौती लेकर आया. 1984 में सिख चरमपंथ की धीरे धीरे सुलगती आग फैलती गई और अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में चरमपंथियों का जमावड़ा होने लगा. जून 1984 में इंदिरा ने सेना को मंदिर परिसर में घुसने और ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाने का आदेश दिया. स्वर्ण मंदिर परिसर में हजारों नागरिकों की उपस्थिति के बावजूद इंदिरा गांधी ने आतंकवादियों का सफाया करने के लिए सेना को धर्मस्थल में प्रवेश करने का आदेश दिया. इस ऑपरेशन में कई निर्दोष नागरिक भी मारे गए.


‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ को लेकर उन्हें कई तरह की राजनीतिक समस्याओं का सामना करना पड़ा. राजनीति की नब्ज को समझने वाली इंदिरा मौत की आहट को तनिक भी भाप नहीं सकीं और 31 अक्टूबर, 1984 को उनकी सुरक्षा में तैनात दो सुरक्षाकर्मियों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने उन्हें गोली मार दी. दिल्ली के एम्स ले जाते समय उनका निधन हो गया.


उनकी मौत के बाद तो जैसे उनके अपनों ने ही उनको बदनाम करना शुरू कर दिया. उनके करीबियों ने मौके का फायदा उठाकर खुद को कांग्रेस का वफादार बताने के चक्कर में सिख दंगे करवा दिए. वह यह बात नहीं समझ सके कि अगर इंदिरा की दुश्मनी सिखों से ही होती तो वह खुद क्यूं सिख अंगरक्षक रखतीं.


इंदिरा की राजनीतिक विरासत को पहले उनके बड़े पुत्र राजीव गांधी ने आगे बढ़ाया और अब सोनिया गांधी और राहुल गांधी उससे जुड़े हैं. आज देश और विदेश में इंदिरा के नाम से कई इमारतें, सड़कें, पुल, परियोजनाओं और पुरस्कारों के नाम जुड़े हैं.


इंदिरा गांधी की तरह ही उनके बेटे राजीव गांधी की मौत भी हुई. इंदिरा गांधी के पहले बेटे संजय गांधी की मौत भी एक वायु दुर्घटना में हो गई थी.


इंदिरा गांधी का सपना था “गरीबी मिटाओ” लेकिन अब कांग्रेस का नारा है “गरीब हटाओ”. दोनों की कार्यशैली और विचार धारा में जमीन आसमान का अंतर है. एक तरफ इंदिरा गांधी की सोच थी जो अमेरिका जैसे ताकतवर देश के आगे भी नहीं झुकती थीं तो दूसरी तरफ आज के नेता हैं जो बार बार हमलों के बाद भी पाकिस्तान तक को जवाब नहीं दे पा रहे हैं. इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व पर लोगों की अलग अलग राय जरूर होगी पर एक विषय में सबकी राय एक ही है कि उनका हौसला चट्टान की तरह मजबूत था.

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