मधुकर दत्तात्रय देवरस का जीवन परिचय
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व अध्यक्ष और सर संघचालक मधुकर दत्तात्रय देवरस का जन्म 11 दिसंबर, 1915 को नागपुर में हुआ था. इनका परिवार मूलत: आंध्र-प्रदेश से संबंधित था. कृषक परिवार से संबंध होने के कारण मधुकर दत्तात्रेय कृषि में बहुत गहन रुचि रखते थे. बालासाहेब देवरस के नाम से विख्यात मधुकर दत्तात्रेय ने न्यू इंगलिश हाई स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद 1931 में मध्य प्रांत के बरार बोर्ड ऑफ सेकेंड्री एजुकेशन से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की. 1935 में तत्कालीन मोरिस कॉलेज (अब मागपुर महाविद्यालय) से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद मधुकर दत्तात्रेय ने कॉलेज ऑफ लॉ, नागपुर विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की. आरएसएस के आदर्शों को अपनाते हुए दत्तात्रेय ने अपना सारा जीवन राष्ट्रीय सेवक संघ के लिए समर्पित कर दिया. उन्होंने आजीवन विवाह ना करने का प्रण लेते हुए वकालत को भी त्याग दिया. बंगाल में एक आरएसएस प्रचारक के रूप में काम करने के बाद मधुकर दत्तात्रेय नागपुर शहर के आरएसएस सचिव नियुक्त किए गए. 1946 में वह सह महासचिव और 1965 में आरएसएस के महासचिव नियुक्त हुए. 5 अक्टूबर, 1973 को माधव सदाशिव गोलवलकर के निधन के पश्चात मधुकर दत्तात्रेय देवरस सर संघचालक नियुक्त हुए.
मधुकर दत्तात्रेय देवरस का संघ संबंधी दृष्टिकोण
एक रुढिवादी हिंदू परिवार से संबंधित मधुकर दत्तात्रेय कभी भी छुआछूत जैसी व्यवस्थाओं का अनुसरण नहीं करते थे. यहा तक की उन्होंने अपनी माता जो स्वभाव और व्यवहार दोनो से ही रुढ़िवादी थीं, को निम्न जाति से संबंधित अपने मित्रों, जो कभी-कभार उनके घर खाना खाते थे, के बर्तन मांजने के लिए मना लिया था. 1973 में सर संघचालक बनने के बाद दत्तात्रेय ने यह घोषित कर दिया था कि यदि अस्पृश्यता गलत नहीं है, तो इस दुनियां में कुछ भी गलत नहीं है. एक वर्ष के भीतर ही सैकड़ों स्वयंसेवियों ने अस्पृश्यता को त्याग, हरिजन और निम्न जाति के लोगों के साथ सहयोग करना प्रारंभ कर दिया था. तबियत ठीक ना रह पाने के कारण अपने जीवनकाल में ही मधुकर देवरस ने डॉ. राजेन्द्र सिंह, जो एक लंबे समय तक उनके सहायक रहे, को 11 मार्च, 1994 को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था. ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी संघसंचालक ने जीवित रहते हुए अपना उत्तराधिकारी चुन लिया हो. मधुकर दत्तात्रेय देवरस के एक शिष्य श्रीकांत जोशी ने उनकी बहुत सेवा की. समय पर दवाई देने से लेकर उनके खान-पान का ध्यान भी वह स्वयं ही रखते थे. यही कारण है कि स्वास्थ्य अत्याधिक खराब होने के बावजूद मधुकर दत्तात्रेय काफी वर्षों तक जीवित रहे. वी.पी. सिंह सरकार में जब आरक्षण की योजना को लागू किया गया तब मधुकर दत्तात्रेय ने भी गैर राजनैतिक तौर पर इस योजना के प्रति संघ के विचारों का निर्माण किया. वह जानते थे कि मात्र उच्च जाति के लोगों को संघ में शामिल कर संघ को चलाया नहीं जा सकता. आरक्षण को लेकर उस समय बहुत चिंतनीय हालात पैदा हो गए थे. समय की मांग के अनुसार उन्होंने आरक्षण को समर्थन देते हुए कहा कि आरक्षण के चलते अयोग्य लोगों को भी डॉक्टरी पेशे में आने का मौका मिल जाएगा और हम अयोग्य डॉक्टरों पर निर्भर नहीं रह सकते. कुछ समय के लिए अयोग्य डॉक्टरों को हमारा समाज सहन कर सकता है लेकिन समाज का बंटवारा बिलकुल नहीं.
अपातकाल और बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद संघ पर लगे प्रतिबंध के कारण देवरस बहुत चिंतित और उदास हो गए थे. देवरस का यह कहना था कि हिंदुओं में व्याप्त जातीय भेद-भाव और ऊंच नीच को समाप्त करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है.
मधुकर दत्तात्रेय देवरस का निधन
मधुकर दत्तात्रेय देवरस डाइबिटीज के मरीज थे. उनका स्वास्थ्य दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा था. इसी कारण उन्होंने अपने जीवन काल में ही डॉ. राजेंद्र सिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था. गिरते स्वास्थ्य के कारण 17 जून, 1996 को मधुकर दत्तात्रय देवरस का निधन हो गया.
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