विशुद्ध गांधीवादी नेता लाल बहादुर शास्त्री ने अपना संपूर्ण जीवन सादगी और मानव सेवा के लिए अर्पित कर दिया था. परिष्कृत छवि और ईमानदार व्यक्तित्व वाले नेता लाल बहादुर शास्त्री राजनीति और धर्म को एक-दूसरे से अलग रखना ही बेहतर समझते थे. वर्तमान समय में कोई भी नेता राजनीति के क्षेत्र में कदम रखते ही पैसों से खेलने लगता है वहीं लंबे समय तक कैबिनेट मंत्री और प्रधानमंत्री रहने वाले शास्त्री जी ने अपने जीवन के अंतिम पल बेहद गरीबी में गुजारे थे. जिससे यह साफ जाहिर होता है कि उन्होंने अपना जीवन धन-समृद्धि के लिए नहीं बल्कि अपने आदर्शों के लिए जिया था.
लाल बहादुर शास्त्री का जीवन परिचय
भारत के तीसरे और स्थायी तौर पर दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय, उत्तर प्रदेश के बेहद निम्नवर्गीय परिवार में हुआ था. इनका वास्तविक नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था. शास्त्री जी के पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक गरीब शिक्षक थे जो बाद में भारत सरकार के राजस्व विभाग के क्लर्क के पद पर आसीन हुए. लाल बहादुर की शिक्षा हरीशचंद्र उच्च विद्यालय और काशी विद्या पीठ में ही हुई और यहीं स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें ‘शास्त्री’ की उपाधि से सम्मानित किया गया. तत्पश्चात वह भारत सेवक संघ से जुड़ गए. यहीं से उनके राजनैतिक जीवन की शुरुआत हुई. इनकी प्रतिभा और निष्ठा को देखते हुए भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के पश्चात कांग्रेस पार्टी ने लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री पद का उत्तरदायित्व सौंप दिया.
लाल बहादुर शास्त्री का राजनैतिक योगदान
लाल बहादुर शास्त्री ने स्वाधीनता आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया. लगभग सभी आंदोलनों में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा. स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करने के बाद वह गांधी जी के साथ स्वतंत्रता के मार्ग पर पूर्ण रूप से अग्रसर रहे. स्वाधीनता आंदोलनों में अपनी सक्रिय भागीदारी की वजह से उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. राजनैतिक क्षेत्र में वे सबसे अधिक गोविंद वल्लभ पंत और जवाहरलाल नेहरू से प्रभावित हुए. भारत को पूर्ण स्वतंत्रता मिलने के पश्चात लाल बहादुर शास्त्री जी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया गया साथ ही गोविंद वल्लभ पंत के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए वह प्रहरी एवं यातायात मंत्री भी बने. अपने कार्यकाल में उन्होंने पहली बार किसी महिला को संवाहक (कंडक्टर) के पद पर नियुक्त किया इसके अलावा भीड़ को नियंत्रण में रखने के लिए लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग भी लाल बहादुर शास्त्री ने ही प्रारंभ कराया. इसके बाद 1951 में, जवाहर लाल नेहरु के नेतृत्व में वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव बने और फिर यहीं से उनका कद निरंतर बढ़ता गया. अपने साफ और निष्पक्ष आचरण के लिए उन्हें सन 1963 में कांग्रेस संसदीय की ओर से भारत का प्रधानमंत्री निर्वाचित किया गया. 26 जनवरी, 1965 को लाल बहादुर शास्त्री ने देश के जवानों और किसानों को अपने कर्म और निष्ठा के प्रति सुदृढ़ करने और देश को खाद्य संबंधी क्षेत्र में आत्म निर्भर बनाने के उद्देश्य से ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया जिसका अनुसरण स्वतंत्र भारत आज भी करता है.
लाल बहादुर शास्त्री को दिए गए सम्मान
सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट योगदान और देशभक्ति के लिए उन्हें वर्ष 1966 में भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
लाल बहादुर शास्त्री का निधन
उजबेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी, 1966 को उनकी मृत्यु हो गई.
हालांकि भारत की आर्थिक समस्याओं को ठीक ढंग से ना निपटाने और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने की वजह उनकी काफी आलोचनाएं हुईं. लेकिन जम्मू कश्मीर के विवादित प्रांत पर पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ सख्त और दृढ़ व्यवहार अपनाने के लिए उन्हें काफी लोकप्रियता भी मिली. भले ही उनके राजनैतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन उनकी ईमानदार और देशभक्त छवि पर कोई आंच नहीं आई. आज भी देश उन्हें उनकी सादगी और कर्तव्यपरायणता के लिए याद करता है.
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